स्पेशल डेस्क, रांची : राजनीति संभावनाओं का खेल है। एक दरवाजा बंद होने पर कई नई खिड़कियां खुल जाती हैं। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास को ओडिशा के राज्यपाल पद की नई जिम्मेदारी मिलने के बाद जमशेदपुर में भगवा ब्रिगेड का नया चैप्टर खुलने वाला है। बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या जमशेदपुर शहर की दो विधानसभा सीटों पर भाजपा नये नेतृत्व को मौका देने पर विचार कर सकती हैं।
इसमें दो युवा नेताओं का नाम सबसे अधिक चर्चा में है। कदमा शास्त्रीनगर में हुए बवाल के बाद लंबे समय तक जेल में रहे अभय सिंह कट्टर हिंदू राजनीति के नए पोस्टर ब्वॉय बनकर उभरे हैं। उन्हें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का करीबी माना जाता है। अभय सिंह पहले से जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं भाजपा के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले दूसरे सशक्त कैंडिडेट माने जा रहे हैं। इन्हें केंद्रीय मंत्री सह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का नजदीकी माना जाता है। लेकिन काले की राह में एक और बड़ी चुनौती है। वे तकनीकी रूप से भाजपा में नहीं हैं। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान काले को पार्टी से निष्कासित करने की घोषणा कर दी गयी थी।
भगवा ब्रिगेड का जमशेदपुर में खुलेगा नया चैप्टर
काले भावनात्मक रूप से तो भाजपा से उसी तरह जुड़े हैं जैसा जुड़ाव 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी से उनके निष्कासन के पहले तक था। तब सियासी हलकों में यही माना गया था कि रघुवर दास से साथ असहज हो गये सियासी रिश्तों की वजह से ही पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता रहे काले को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। रघुवर के राज्य की सक्रिय राजनीति से अलग हो जाने के बाद काले के लिए भाजपा का दरवाजा खुलवाना पहली व सबसे बड़ी चुनौती है। भाजपा में प्रवेश मिल जाने के बाद विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए काले ही दावेदारी प्रबल हो जाएगी क्योंकि उम्मीदवारी पाने के लिए जरूरी माने जानेवाली अधिकांश अहर्ताएं काले के सियासी व सामाजिक-धार्मिक सक्रियता वाले बायोडाटा में वजनदार रूप में मौजूद हैं।
दूसरी ओर हाल में भाजपा में कई पूर्व नौकरशाहों के शामिल होने और उद्योगपतियों-कारोबारियों की सक्रियता बढऩे से संगठन के सामने उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट हो सकती है। यह पार्टी को तय करना होगा कि पिछले विधानसभा चुनाव का सूखा आखिर किसके नाम पर चुनावी हरियाली में बदल सकता है।
अगले विधानसभा चुनाव के लिए बन रहे ये समीकरण
पहला समीकरण : अब तक जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से अलग-अलग सिंबल पर चुनाव लड़ते आ रहे भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष अभय सिंह को पार्टी जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से टिकट दे सकती है। इसके पीछे तीन अहम कारण हैं:
1. समुदाय विशेष के लोगों की संख्या अधिक होने के कारण जमशेदपुर पूर्वी की बजाय जमशेदपुर पश्चिम में वोटो का ध्रुवीकरण कहीं अधिक हो सकता है। इसका फायदा पार्टी को मिल सकता है। कुछ माह पहले हुए कदमा शास्त्रीनगर विवाद के मामले में जिस तरह अभय सिंह को जेल में रखा गया उससे एक बहुत बड़ा वर्ग आहत महसूस कर रहा है। जाहिर है इसका असर चुनाव में पड़ सकता है।
2. जमशेदपुर पश्चिम सीट के लिए पार्टी के पास सबसे अधिक टिकट के दावेदार हैं लेकिन रघुवर दास के राज्यपाल बन जाने के बाद सियासी समीकरण बदल जाएंगे। स्वाभाविक रूप में अपनी हिंदुत्व की धारदार छवि व मरांडी के करीबी सियासी रिश्तों की बदौलत अभय बाकी दावेदारों पर अभी से ही भारी दिखने लगे हैं।
3. जमशेदपुर पूर्वी में अभय सिंह का अपना वोट बैंक भी है। यह वोट बैंक वहां के पार्टी प्रत्याशी के काम आ सकता है। यह पार्टी के अपने वोट बैंक के अतिरिक्त अर्जित ऊर्जा होगी। अभय सिंह की बढ़ी हालिया लोकप्रियता का फायदा पार्टी एक साथ दोनों सीटों पर उठा सकती है।
दूसरा समीकरण : जमशेदपुर पूर्वी में पिछले कुछ समय से अमरप्रीत सिंह काले लगातार सक्रिय बने हुए हैं। पूर्वी में सिख समुदाय का बड़ा वोट बैंक है। अमरप्रीत सिंह काले को अर्जुन मुंडा के साथ-साथ जमशेदपुर पूर्वी के मौजूदा विधायक सरयू राय का भी आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। काले अपनी सामाजिक संस्था नमन के जरिए काफी युवाओं को लंबे समय से जोडऩे का काम कर रहे हैं। इसका फायदा उन्हें चुनाव में बूथ मैनेजमेंट के स्तर तक मिल सकता है। लेकिन पहले ही बताया गया है कि काले के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती भाजपा में प्रवेश पाने की है।
तीसरा समीकरण : कास्ट सर्वे से देश में गरमा रहे सियासी माहौल में भाजपा के भीतर टिकट के लिए ओबीसी कार्ड खेलने की भी गुपचुप तरीके से तैैयारी शुरू की जा चुकी है। जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में इसे आजमाने का प्रयास किया जा रहा है। इस कार्ड के सहारे कुछ ऐसे नेताओं का नाम आगे किया जा रहा जो ओबीसी श्रेणी से संबंध रखते हैं और चुनावी संसाधन जुटाने में भी किसी अन्य तगड़े दावेदार से उन्नीस नहीं माने जाते। यदि ओबीसी कार्ड चला तो भाजपा जमशेदपुर में 2024 के विधानसभा चुनाव में भी वैसे ही चौंका सकती है जैसे 1995 के चुनाव में रघुवर दास को पहली बार प्रत्याशी बनाकर चौंकाया था।
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