जमशेदपुर : Child Pornography देखने और उसे डाउनलोड करने को अपराध नहीं मानने के मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है। मद्रास हाई कोर्ट ने एक चर्चित आदेश में चेन्नई के 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर और आपराधिक कार्रवाई को खारिज करते हुए कहा था कि बाल पोर्नोग्राफी देखना पोक्सो एक्ट-2012 के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता है।
जमशेदपुर स्थित कला मंदिर-द सेल्यूलायड चैप्टर आर्ट फाउंडेशन के उपाध्यक्ष अमिताभ घोष ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की नोटिस पर खुशी जाहिर करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फूलका ने कहा, “यह न्याय का अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में ऐतिहासिक पल है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि एक आपराधिक मामले में भी कोई तीसरा पक्ष जो कि सीधे इस अपराध से प्रभावित नहीं है, ऊपरी अदालतों का रुख कर सकता है अगर उसे लगता है कि न्याय नहीं हुआ है।”
पांच गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस, जिसके 120 से ज्यादा सहयोगी हैं, और बचपन बचाओ आंदोलन ने हाई कोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी थी। यह गठबंधन पूरे देश में बच्चों के यौन उत्पीड़न, चाइल्ड ट्रैफिकिंग यानी बाल दुर्व्यापार और बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहा है।
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए एलायंस ने याचिका में कहा कि इस फैसले से आम जनता में यह संदेश गया है कि बाल पोर्नोग्राफी देखना और इसके वीडियो अपने पास रखना कोई अपराध नही है। इससे बाल पोर्नोग्राफी से जुड़े वीडियो की मांग और बढ़ेगी और लोगों का इसमें मासूम बच्चों को शामिल करने के लिए हौसला बढ़ेगा।
इससे पहले 11 जनवरी को मद्रास हाई कोर्ट ने बाल पोर्नोग्राफी देखने और इसे डाउनलोड करने को अपराध मानने से इनकार करते हुए इस संबंध में दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया था।
Child Pornography : चेन्नई की अंबत्तूर पुलिस ने की थी कार्रवाई
चेन्नई की अंबत्तूर पुलिस ने आरोपी के फोन को जब्त कर छानबीन में पाया कि उसमें बड़ी मात्रा में बाल पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्रियां हैं। इसके बाद उसके खिलाफ आईटी एक्ट और पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहते हुए मामले को खारिज कर दिया कि आरोपी ने महज बाल पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्रियां डाउनलोड कर इसे अकेले में देखा, उसने इसे कहीं भी प्रसारित या वितरित नहीं किया। हाई कोर्ट ने आगे कहा कि यह मामला पोक्सो के दायरे में नहीं आता, क्योंकि आरोपी ने बाल पोर्नोग्राफी के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया। लिहाजा इसे ज्यादा से ज्यादा आरोपी का नैतिक पतन कहा जा सकता है।
Child Pornography : केरल हाई कोर्ट के फैसले का लिया सहारा
मद्रास हाई कोर्ट ने आरोपी को बरी करने के लिए आईटी और पोक्सो एक्ट के तहत दिए गए केरल हाई कोर्ट के एक फैसले का सहारा लिया। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस ने अपनी याचिका में कहा कि इस मामले में केरल हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा करना एक चूक थी। एलायंस ने कहा, “सामग्रियों की विषयवस्तु एवं प्रकृति से स्पष्ट है कि यह पोक्सो के प्रावधानों के तहत आता है और यह इसे उस मामले से अलग करती है, जिस पर केरल हाई कोर्ट ने फैसला दिया था।
शीर्ष अदालत के रुख का स्वागत करते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संयोजक रवि कांत ने कहा, “बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में यह एक उल्लेखनीय कदम है। यदि कोई व्यक्ति बाल पोर्नोग्राफी, बाल यौन शोषण से जुड़े वीडियो डाउनलोड करता है तो इसका मतलब है कि किसी बच्चे का बलात्कार हुआ है और ऑनलाइन चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मैटीरियल (सीसैम) की मांग बच्चों से बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा देती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में बाल पोर्नोग्राफी के मामले में तेजी से इजाफा हुआ है। देश में 2018 में जहां 44 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2022 में यह बढ़कर 1171 हो गए।
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