हिमालय घूमने की जब भी बात होती है सबसे पहला ख़्याल मेरे मन में उत्तराखंड का आता है। इस राज्य की एक ख़ास जगह जो मेरी स्मृतियों में बसती है वह फूलों की घाटी है। इस जगह के बारे में मैं वर्षों से पढ़ता आया था पर कभी देखने का सौभाग्य नहीं मिला। इसलिए सोचा क्यों ना इस बार यह अधूरा सपना भी पूरा कर लिया जाये। एक दोस्त ने बताया कि फूलों की घाटी पहुंचने के लिए चमोली जिले का अन्तिम बस अड्डा गोविन्दघाट है।
गोविन्दघाट से प्रवेश स्थल की दूरी तेरह किमी रह जाती है जहां से पर्यटक तीन किमी लम्बी व आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं।
फूलों की घाटी एक राष्ट्रीय उद्यान है जिसे आमतौर पर सिर्फ़ फूलों की घाटी कहा जाता है। नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित है। हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा हुआ यह क्षेत्र फूलों की पांच सौ से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ है तथा बागवानी विशेषज्ञों और फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया है।
नंदकानन के नाम से इस जगह का वर्णन रामायण और महाभारत में भी मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि यही वह जगह है जहां से हनुमान लक्ष्मण के लिए संजीवनी लेकर गए थे। परन्तु स्थानीय लोग इसे परियों और किन्नरों का निवास समझकर इस जगह पर जाने से अब भी कतराते हैं।
यह बात मुझे चौंकाती है क्योंकि इसके पीछे मुझे कोई ठोस तथ्य नहीं मिलता। इतना जरूर है कि इस जगह पर अधिक ऊंचाई के कारण ऑक्सीजन का स्तर कम होने लगता है। कुछ फूल की प्रजातियां भी इस जगह पायी गईं हैं जिसे सूंघकर इंसान बेहोश हो जाता है। शायद, इसीलिए स्थानीय लोगों के मन में तरह-तरह की भ्रांतियां हैं।
इस जगह पर 1931 से पहले तो कोई जाता भी नहीं था। यहां कभी-कभार स्थानीय लोग अथवा कुछ चरवाहे ही अपनी भेड़ बकरियों को लेकर ही पहुंच पाते थे। इस जगह की पहचान तब हो सकी जब ब्रितानी पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्ड्सवर्थ अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौटने के दौरान रास्ता भटककर इस घाटी में पहुंच गए। चारों तरफ फूलों और इसकी बेइंतहा खूबसूरती से वह इतना प्रभावित हुए कि स्मिथ 1931 में तो लौट गए लेकिन 1937 में यहां दोबारा वापस आये। इसे देखा, समझा और जाना तथा वर्ष 1968 में वैली ऑफ फ्लावर्स नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी।
इस किताब के माध्यम से यह जगह दुनिया के सामने आयी और फूलों की घाटी के रूप में एक पहचान मिली। जिससे पर्यटकों और पर्वतारोहियों की आवाजाही शुरू हुई। अब तो इस जगह को देखने के लिए हजारों लोग आते हैं। फूलों की घाटी में भ्रमण के लिये जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों को सही माना जाता है ।
यह एक पर्यटन स्थल होने के साथ-साथ जैव विविधता की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण जगह है। यहां पर जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की हजारों प्रजातियां पायी जाती हैं जो कि इस धरती और मानव जीवन के लिए काफी उपयोगी हैं। इसीलिए, यूनेस्को ने इसे वैश्विक धरोहर का दर्जा दिया है।
अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि यहां सैकड़ों ऐसी जड़ी-बूटियां और वनस्पतियां पायी जाती हैं जो अत्यंत दुर्लभ हैं और विश्व में कहीं और नहीं पायी जाती। यहां के फूलों में अद्भुत औषधीय गुण होते हैं, यहां मिलने वाले फूलों का इस्तेमाल दवाइयां बनाने में होता है।
यह घाटी हेमकुंड साहिब के रास्ते पर पड़ती है जिसकी वजह से कई बार हेमकुंड जाने वाले यात्री भी लौटते वक़्त इस जगह पर आते हैं। यह तो एक पंथ दो काज वाली स्थिति हो जाती है। मेरी भी इच्छा फूलों की घाटी को देखने के बाद गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब जी के दर्शन का था पर समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर होने की वजह से अक्सर बर्फ जमी रहती है और साल में सिर्फ तीन महीने ही जाना संभव हो पाता है।
यह सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस जगह के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि हेमकुंड एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ – हिम (बर्फ) और कुंड (कटोरा) है। इस स्थान पर सिखों के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पिछले जीवन में ध्यान साधना की थी और वर्तमान जीवन में अवतार लिया था।
हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारा की खोज 1930 में हवलदार सोहन सिंह ने की थी। यह पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब और झील चारों तरफ बर्फ से ढकी सात पहाड़ियों से घिरे हुए हैं। यह स्थान अपनी अदम्य सुंदरता के लिए जाना जाता है और यह सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक माना गया है।
इस पवित्र स्थल को पहले लोकपाल भी कहा जाता है, जिसका अर्थ विश्व का रक्षक होता है। श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के पास ही एक सरोवर है। इस पवित्र जगह को अमृत सरोवर अर्थात अमृत का तालाब कहा जाता है। यह सरोवर लगभग चार सौ गज लंबा और दो सौ गज चौड़ा है।
हेमकुंड साहिब के पास सप्तऋषि चोटियां स्थित है, जिन पर खालसा पंथ का प्रतीक निशान साहिब पर ध्वज लहराता है। हेमकुंड साहिब ही वह जगह है, जहां पांडु राजा अभ्यास योग करते थे। इसके अलावा दसम ग्रंथ में यह कहा गया है कि जब पाण्डु हेमकुंड पहाड़ पर गहरे ध्यान में थे तो भगवान ने उन्हें सिख गुरु गोबिंद सिंह के रूप में यहां पर जन्म लेने का आदेश दिया था।
हेमकुंड साहिब चारों तरफ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हुआ है। इस जगह को रामायण के समय से मौजूद माना गया है। कहा जाता है कि लोकपाल वही जगह है, जहां श्री लक्ष्मण जी अपना मनभावन स्थान होने के कारण ध्यान पर बैठ गए थे और यह भी कहा जाता है कि अपने पहले के अवतार में गोबिंद सिंह जी ध्यान के लिए यहां आए थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा ‘विचित्र नाटक’ में इस जगह से जुड़े अपने अनुभवों का उल्लेख किया है।
हेमकुंड साहिब पहुंचने के लिए बीस किमी से भी ज्यादा पैदल पहाड़ की चढ़ाई करनी होती है, लेकिन इस जगह पर पहुँचकर मन प्रसन्नता से भर जाता है। ऐसा लगता है कि हम किसी जन्नत में आ गए हैं। इसलिए, इस जगह पर हर किसी को एक ना एक बार ज़रूर जाना चाहिए।
संजय शेफर्ड
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