हम भी वहीं से लाए हैं, जहां से तुम आए हो़… यह जुमला इन दिनों लौहनगरी में जोर-शोर से गूंज रहा है। दरअसल, दस साल पहले अपने उम्मीदवार जहां से आकर सदन की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे थे, इस बार भी फूल पकड़कर वहीं जाने की तैयारी में हैं। उधर, तीर-धनुष वालों ने भी काफी माथापच्ची करके निष्कर्ष निकाला कि हमें भी वहीं से प्रत्याशी लाना चाहिए, जो ऊंची कुर्सी की ओर ले जाता है। वैसे कुछ लोग इसे मैच फिक्सिंग भी बता रहे हैं। इस पर आगे बात होगी।
फोकट में बदनाम हो गया खूबसूरत युवा
राजनीति जो न करा दे। चुनाव लड़ो तो सात पुश्तों की बखिया उधेड़ दी जाती है, न लड़ो तो तमाम कमियां गिनाई जाती हैं। यहां तो एक खूबसूरत युवा बिना कुछ किए धरे, बदनाम हो रहा है। बेचारे ने कभी अपने मुंह से कभी टिकट नहीं मांगा। बस दौड़-धूप कर रहा था। सात समुंदर पार से सम्मानित होकर आया था, लेकिन उसे अपने घर में ही सम्मान के लायक नहीं समझा गया। लोगों का तो काम ही है कहना, चाहे गधे पर बैठ कर जाओ या उतर कर।
चाचा खेल रहे चूहे-बिल्ली का खेल
लोहे की नगरी से पूरे सूबे में चाणक्य जैसी धाक जमाने वाले चाचा अब चूहे-बिल्ली का खेल दिखा रहे हैं। पहले तो चूहे को खूब हड़काया, अब जब वह बिल में घुस गया तो फिर उसे बाहर निकलने के लिए ललकार रहे हैं। कोयले की धूल में चाचा दूर से ही निशाना लगाने के फेर में हैं, लेकिन अभी यह सस्पेंस बना हुआ है कि बंदूक किसके कंधे पर रख कर चलाई जाएगी। कंधा भी ऐसा होना चाहिए, जो फायरिंग के समय हिले नहीं, वरना निशाना चूक गया तो आफत आ जाएगी।
चुनावी मौसम का फायदा
हर मौसम का कुछ न कुछ नफा-नुकसान होता है, जिसमें चुनावी मौसम भी है। इस मौसम का इंतजार कब्जा करने वाले भी उठाते हैं, तो कब्जा हटाने वाले भी। ऐसा ही कुछ अपने शहर में दिख रहा है। दोनों तरफ से आक्रामक तैयारी है। कुछ दिन पहले एक कंपनी के कुछ शरीफ लोग मैदान घेरने गए थे, लेकिन उन्हें विरोध के बाद उल्टे पांव लौटना पड़ा। अब एक विभाग बिल्डिंगों में घूम-घूम कर देख रहा है कि कहां बाइक-कार लगाने की जगह नहीं है। इसमें जो सबसे कमजोर दिखेगा, पहले उसे पकड़ कर चित्त कर देंगे।
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