एक ही पिच पर लगातार बैटिंग कर चुके दो कैप्टन हाल ही में मिले। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब यही दोनों आसपास बैठ कर भी नजरें चुराते देखे गए थे। ईश्वर जो न करा दे, नियति ने ऐसा चक्र चलाया कि एक को दूसरे से मिलने पर मजबूर कर दिया। पिछली बार थर्ड अंपायर ने साथ नहीं दिया होता तो बंटाधार हो ही गया था। बताते हैं कि दूसरा इस बार मंत्रणा लेने नहीं, टॉस कराने गया था कि इस बार हेड या टेल। खबर यह भी है कि फिल्म शोले की तरह कैप्टन को सिक्के में हेड ही दिखा।
बिल्ली के गले की घंटी
कुछ दिन पहले की ही बात है, बड़े जोर-शोर से आवाज उठी थी कि चाचाजी शैतान बिल्ली के गले में घंटी बांधने जाएंगे। दो-चार बार चाचा रेकी भी कर आए थे, लेकिन टाइमिंग मैच नहीं कर रही थी। इसी बीच चाचा को परेशान देख रिश्तेदारों ने बहू को यह जिम्मेदारी सौंप दी, लेकिन बहू भी जानती है कि यह काम उसके बूते का नहीं है, सो झट से आई और चाचाजी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद मांग लिया। हालांकि, चाचा ने अभी फाइनल आशीर्वाद बचा कर रखा है।
अब यहां होगा राजनीति का ओलिंपिक
कहते हैं, सब्र का फल मीठा होता है। शायद इसीलिए यहां की दो राजधानी अब भी कैप्टन की आस लगाए बैठी है। बताया जाता है कि रविवार को यहां राजनीति का ओलिंपिक होना है। इसमें मोरहाबादी को रामलीला मैदान का रूप दिया जाएगा। उसके दूसरे दिन ही कैप्टन की घोषणा की जाएगी कि राज्य और उद्योग की राजधानी से कौन कैप्टन होगा। वैसे संकेत दे दिया गया है कि खतियानी ही होगा खिलाड़ी, जिस पर दांव लगाया जाएगा।
हड़काने से नहीं लगा जाम
जब भी यहां कोई धर्म-कर्म का बड़ा कर्मकांड होता है, बड़े आकाओं के हाथ-पैर सूजने लगते हैं। जैसे-जैसे घड़ी नजदीक आती है, सूजन उसी रफ्तार में बढ़ने लगती है। पिछली बार शहर के चार-पांच स्थानों से झंडा निकला था तो मानगो सहित पूरा इलाका भयंकर जाम हो गया था। इसका कारण समझ में आया तो दूसरे झंडे में बांस से डिवाइडर की घेराबंदी नहीं की गई। बस क्या था, रात पर झंडा निकलता रहा, लेकिन जाम नहीं लगा। खाकी वालों को भी टेंशन नहीं रहा।
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