लेखक ,दिलीप कुमार: सत्तो जिज्जी और पत्तोजिज्जी आजकल नामी लेखिका बनी बैठी हैं । पत्तो जिज्जी तो ज्यादातर घर -गृहस्थी में व्यस्त रहती हैं , उन्हें सोसाइटी के व्हाट्सअप ग्रुप और किटी पार्टी में चुगली और परनिंदा के भरपूर अवसर मिल जाते हैं इसलिये उन्हें लिखने पढ़ने में मजा नहीं आता। अलबत्ता इतना जरूर लिख पढ़ देती हैं कि लेखिका का लेवल चस्पा रहे। इसके उलट सत्तो जिज्जी लंबा दंश मारने में यकीन रखती थीं
।वह शांत ,मृदुभाषी और अल्पभाषी हैं जो लिख पढ़कर घाव देना, बदला लेना उचित मानती थीं। तो साहित्य के इन सीता और गीता के जन्म जीवन की भी बेहद पौराणिक कथा है। इनके वालिद साहब लोकनिर्माण विभाग में क्लर्क हुआ करते थे और उनके पास नहरों की सिल्ट की सफाई का काउंटर हुआ करता था। बाढ़ का काउंटर एलाट था तो घर में लक्ष्मी की खूब बाढ़ आई । उसी बाढ़ में उनकी दोनों बेटियां खूब बढ़ीं। एक का नाम था सत्यवती और दूसरी का नाम था पार्वती।
मगर दोनों सत्तो -पत्तो के नाम से मशहूर थीं, कभी -कभार लोग उन्हें चंगू -मंगू भी कहा करते थे। एक बार वो दोनों जिस डिग्री कालेज में पढ़ती थीं उसकी सारी दीवारों पर किसी सिरफिरे ने चंगू मंगू लिख दिया था। उन दोनों की ख्वाहिश तो सीता और गीता बनने की थी क्योंकि जब वे कालेज में थीं तभी सीता और गीता जैसी लोकप्रिय फिल्म रिलीज हुई थी ,मगर तकदीर ने उन्हें कभी सत्तो-पत्तो बनाया तो कभी चंगू -मंगू। बेलबॉटम ,हाफ शर्ट, स्कार्फ तो उन्होंने हेमामालिनी जैसा अपनाया मगर कद ,आवाज और रंगत हेमामालिनी की विलोम ही रही उन दोनों की।
सत्तो-पत्तो को गाने का बड़ा क्रेज था, मगर इनका गाना कभी किसी ने नहीं सुना और जिसने सुना भी उसने दुबारा कभी न सुनने की अहद कर ली। सत्तो-पत्तो जब सम्मिलित स्वर में गाती थीं तो उनके घर के बगल की गायें भी रम्भाने लगती थीं उनकी तान के तानों से। सत्तो ने स्कूल-कालेज में जब भी गाया तब तब उनकी हूटिंग हुई, ये और बात थी कि पत्तो मोहल्ले और रिश्तेदारों से इस बात की हमेशा गवाहियां दीं कि सत्तो के गानों की लोग काफी तारीफ करते हैं।
अलबत्ता सत्तो की हालत देखकर पत्तो ने अपनी भद पिटवाना उचित नहीं समझा और पब्लिक डोमेन में गाने की हिमाकत नहीं की। ऐसे ही पत्तो जब कभी अपने पुरूष मित्रों से निजी और गोपनीय मुलाकातें करनेजाती थी तब सत्तो गवाही देती थी कि पत्तो एक्स्ट्रा क्लासेज लेने गई हैं कोचिंग की।
सत्तो -पत्तो लव स्टोरी फिल्म से काफी प्रभावित थीं बाद में उन्होंने लव मैरिज भी की। पत्तो तो घर -गृहस्थी में रमी रहीं मगर सत्तो को ससुराल में नहीं निभी। उन्होंने ससुराल वालों पर मुकदमा किया ,तगड़ी एलुमनी ली और फिर फिल्मी गीतकार या प्लेबैक सिंगर बनने की संभावनओं को लेकर मुंबई पहुंच गईं फिर तो मौजा ही मौजा।
मुंबई इस देश की आर्थिक राजधानी तो है मगर आले दर्जे के लफ्फाज भी मुंबई में मिलते हैं और हर किस्म की लफ्फाजी और शोशेबाजी को पनाह देने वाले भी बहुतायत मात्रा में भी इसी शहर में पाए जाते हैं। बरसों तक सत्तो जीजी ने कविता में हाथ आजमाया, मगर बात न बनी। इसी बीच छोटकी जिज्जी पत्तो भी सूरत से मुंबई शिफ्ट हो गई थीं।
कविता, व्यंग्य, गीत लिखते -लिखते सत्तो जिज्जी बुढ़ापे की दहलीज पर आ खड़ी हुई। मगर साहित्य की किसी विधा में उनकी कोई खास पहचान बन नहीं पाई, ये और बात थी कि भाई था नहीं ,दो बहनों के बीच अगाध प्रेम था सो पत्तो ने पिता की संपत्ति का अपना सारा हिस्सा सत्तो को दे दिया । गालिबनकैरियर कमाई नहीं फिर भी उम्र के तीन दशक मुंबई में सत्तो जीजी ने तफरीह में काट डाले। सत्तो जिज्जी कविताएं लिखती रहीं, पत्तो उनकी समीक्षा।
सत्तो ने पति का सरनेम कभी अपनाया ही नहीं था क्योंकि शुरू से ही अपना नाम बनाने की अति प्रबल महत्वाकांक्षी थीं। सो अपने नाम में किसी और का नाम कैसे जोड़ लेतीं।
पत्तो ने शादी के बाद अपने पति का सरनेम जोड़ लिया तो वो पार्वती स्पंदन शर्मा के नाम लिखने लगीं, जो कि सत्तो के नाम से अलग था। सो सत्तो ने लेखन चुना और पत्तो ने आलोचना और गवाही। सत्तो किताब लिखती, पत्तों उसकी आलोचना करती। अलग सरनेम देखकर लोग समझते कि लेखिका कहीं अलग की हैं और आलोचक कहीं अलग की।सो तारीफ गढ़ने का उनका ये गोरखधंधा बरसों चलता रहा।
हिंदी की तमाम विधाओं में एकरसता आ चुकी थी । अकहानी, नई कहानी , नई कविता, अतुकान्त कविता के बाद हिंदी में एक नई विधा ने जन्म लिया। उसका नाम रखा गया काल्पनिक संस्मरण। सत्तो ने काल्पनिक संस्मरण लिखने की योजना पत्तो को बताई। पत्तो ने समझाया कि मैं तुम्हारे हर काल्पनिक संस्मरण पर अपनी सशरीर उपस्थिति की गवाही दे तो दूंगी पर ख्याल रहे कि हम उसी शहर में उस वक्त रहे हों और जिसके साथ के संस्मरण लिखे हों वो भी उस वक्त शहर में रहे हों। सत्तो जिज्जी की आदत है कि मुंबई से भगाए जाने के बाद उन्होंने राजेश खन्ना पर भी काल्पनिक संस्मरण लिखे थे कि कैसे उनकी अतुकांत और बेसिरपैर की कविताओं को राजेश खन्ना इंकलाबी पोइट्री कहा करते थे। कब उन्होंने राजेश खन्ना को कविता सुना दी थी कोई नहीं जानता था।
चिवड़ा की गवाही भेली (गुड़)।
सत्तो ने राजेश खन्ना को कविता सुनाई। पत्तो इस बात की गवाही दे रही हैं ,राजेश खना अब इस दुनिया मे हैं नहीं, तब इस बात की तस्दीक कौन करे कि राजेश खंन्ना ने इनकी अतुकांत कविताएं सुनी भी थीं या नहीं,और सुनकर क्या ही कहा होगा। वैसे इस बात को दुनिया जानती है कि राजेश खना को न सिर्फ उर्दू शायरी की गहरी समझ थी बल्कि उनकी बैठकों में बहुत आला शायर और गीतकार शामिल हुआ करते थे,कॉपी करके टीपने वाली अतुकांत खारिज कुकविताएं नहीं।
सत्तो ने किसी फंक्शन में राजेश खन्ना के साथ हाथ में लेकर फोटो खिंचवा ली थी, कंप्यूटर फोटोग्राफी से राजेश खन्ना की विभिन्न उम्र की तस्वीरों और अपनी विभिन्न उम्र की तस्वीरों का ऐसा कोलाज प्रस्तुत किया फेसबुक पर, कि लोग हैरान रह गए। तस्वीरों में राजेश खन्ना के कुर्ते के रंग बदल दिये गए और सत्तो की साड़ियों के रंग।
यानी बार -बार बदले गए इवेंटो से एक नया इवेंट तैयार। सबसे ज्यादा हैरान हुये इनके धारावी वाले मकान मालिक। कि सत्तो वन रूम किचन वाले मकान का भाड़ा नहीं दे पाईथी। बरसों तक उस कमरे पर कब्जा किये रहीं। वो तो जब वो कमरा बिल्डिंग प्लान में आकर तोड़ा जाने लगा तब इन्हें जबरदस्ती खाली करना पड़ा। इनका मकान मालिक हैरान था। फेसबुक पर राजेश खन्ना के साथ इनके फोटो और संस्मरण पढ़कर वो बुदबुदाया-
घर में नहीं आने, अम्मा चलीं भुनाने।
राजेश खन्ना के संस्मरणों से शुरू में तो इनको ख्याति मिली लेकिन जब मुंबई के इनके मकान मालिक, दूधवाला, किराना वाला ने इनकी उधारियों के संस्मरण लिखने शुरू किए तो इनकी खासी फजीहत हुई और ये मुंबई से चंपत हो गईं। परसाई पर जब इन्होंने काल्पनिक संस्मरण लिखने शुरू किए तो काफी शोध और रिसर्च के बाद लिखा कि-
कैसे परसाई जी इन्हें बेटी की तरह लाड़ करते थे, और बचपन में ही इनके लिखे हुए को देखकर कहा था कि तुम बड़ी होकर एक बहुत बड़ी लेखिका बनोगी। हां परसाई जी ने ऐसा कहा था मेरे सामने ही इस बात पर हर जगह पत्तो की बाकायदा लिखित गवाही शामिल थी। वास्तव में ये बात अश्वत्थामा हतो,नरो या कुंजरो जितनी ही सच थी सिर्फ।
एक बार अखबारों के सस्ते चुटकुले टीपकर ये परसाई जी के पास लेकर गई थीं और उन चुटकुलों को अपनी व्यंग्य रचना कहकर उन्हें पढ़ कर उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी। परसाई जी उस्ताद थे उन्होंने सिर्फ इतना कहा था लिखना चाहिये मगर अपना ही। परसाई जी द्वारा सत्तो को कही गई ये बात पत्तो ने भी सुनी थी, मगर पत्तो ने परसाई जी की इस नसीहत की गवाही कभी नहीं दी, न लिखित न ही मौखिक।
तो आपने भी जीजी के काल्पनिक संस्मरण पढ़े क्या और उनके बारे में परसाई जी द्वारा कही गई महान बातें सुनीं क्या।
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