शोर मचाने के लिए कुख्यात टिटहरी की दुनिया खासी रोमांचक और खूबसूरत होती है। आम तौर पर हमारे आस-पास लाल चोंच वाली टिटहरी ही दिखती है, जिसे रेड वाटल्ड लैपविंग के नाम से पक्षियों की दुनिया में जाना जाता है। नदी और पोखर की तटों पर आमतौर पर इसकी रिहाइश देखी जा सकती है।
नर और मादा दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं। घोंसलों और अपने इलाके की रखवाली का इनका तरीका बहादुरीभरा होता है। अमूमन बर्ड फोटोग्राफर्स इसे छेड़ना पसंद नहीं करते हैं। वजह यही है कि यह बहुत तेज आवाज पैदा करने के लिए जाने जाते हैं, बल्कि इनकी आवाज दूसरे पशु-पक्षियों के लिए अलार्म का काम करती हैं। वैसे अलार्म का जो किसी अवांछित या घुसपैठिये की मौजूदगी का सूचक होता है।
इनको छेड़ने का मतलब पूरे इलाके को अपनी मौजूदगी का पता देना होता है। इसलिए समझदार लोग इसे सचेत किये बिना आगे बढ़ना पसंद करते हैं। लाल चोंच वाली टिटहरी खेतों की नम भूमि के आस-पास भी पायी जाती है। मनुष्यों की संगत में रहने के कारण लोक में इससे जुड़ी बहुत सी कथायें और मान्यतायें देखने-सुनने को मिलती हैं। चूंकि यह घोंसला जमीन में बनाती है इसलिए जमीन के ऊँचाई के इसके चुनाव से अनुभवी लोग होनेवाली बारिश का अनुमान लगाया करते थे।
अगर यह अपेक्षाकृत ऊँची जगह पर घोंसला बनाती थी तो वह अच्छी बारिश का सूचक होता था और निचली जगह पर बनाती तो सूखे का। बया पक्षी के घोंसले की जमीन से ऊँचाई के चुनाव से भी बारिश का अनुमान करने की लोकप्रचलित मान्यता का पता चलता है। पक्षियों के जानकार इसकी उम्र छह से पंद्रह वर्ष तक मानते हैं।
साथ ही एक ऐसी विशेषता के बारे में बताते हैं जो अमूमन पक्षियों में कम देखी जाती है और वह यह कि इसके चूजे अंडे से बाहर आने के तुरंत बाद अपने माता-पिता के पीछे चलने में सक्षम हो जाते हैं। इतना ही नहीं वह एक इशारे पर खुद को छिपाने में भी माहिर होते हैं।
हम आमतौर पर लाल चोंच वाली टिटहरी से ही परिचित हैं लेकिन केवल बिहार, बंगाल और झारखंड की बात करें तो कम से कम पाँच किस्म की टिटहरी या लैपविंग देखे जा सकते हैं। और आप जिसको पहली बार देखेंगे वह पिछली बार देखी गयी टिटहरी की तुलना में आपको ज्यादा खूबसूरत जान पड़ेगी। लाल चोंच वाली के साथ ही पीली चोंच वाली टिटहरी भी होती है। इसके सिर पर काले पंखों की एक टोपी किम जोंग के हेयर स्टाईल जैसी मौजूद रहती है।
लाल चोंच वाली से पीली चोंच वाली आकार में उन्नीस ठहरती है। पर एक आम जन को इनके आकार में कुछ खास अंतर परिलक्षित नहीं हो सकता है। चोंच के ऊपर आँखों तक लाल-पीले रंग की एक मास्क-सी संरचना मौजूद होती है। जो इन्हें खासा आकर्षक बनाती है। स्वभाव से दुस्साहसी होने के कारण बर्ड फोटोग्राफर्स के पास प्रायः इनकी सुंदर तस्वीरें देखी जा सकती हैं। कारण कि यह जल्दी अपना इलाका नहीं छोड़ते हैं।
ऊपर मंडरा कर थोड़ी-थोड़ी दूरी में उतर कर अवांछित घुसपैठिये को देखते रहते हैं। इसकी बड़ी वजह तो यही होती है कि यह घोंसले समतल जमीन पर बनाते हैं और इन्हें डर बना रहता है कि कोई उन तक पहुँच ना जाये। इसलिए यह पूरे वक्त मुस्तैद बने रहते हैं। लाल और पीली चोंच वाली टिटहरी की तुलना में ग्रे हेडेड लैपविंग थोड़ा अलग होती है। अव्वल तो यह सर्दियों में झारखंड में दिखती है।
संभवतः यह सर्दियों में माइग्रेट करती है। और साल के अन्य महीनों में कम ही देखी जाती है। लाल और पीली चोंच वाली टिटहरियों की तुलना में यह अपेक्षाकृत शर्मीली और मनुष्यों से दूरी बनाकर रखने में यकीन करनेवाली होती है। इसको क्लिक करने में थोड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। नजदीकी शॉट के लिए तो थोड़ा ज्यादा ही।
यद्यपि अजय नदी झारखंड से होकर ही बंगाल में दाखिल होती है। लेकिन बंगाल के वीरभूम में प्रवेश करते ही अजय नदी एक अलग किस्म के हैबिटॉट का निर्माण करती है। वैसी लम्बी कांस की घासें तो झारखंड में भी दिखती है। लेकिन यहाँ बालू की मात्रा अपेक्षाकृत थोड़ी ज्यादा होती है, शायद इस कारण भी वह मनोनुकूल हैबिटॉट नहीं मिल पाता है जो लैपविंग की एक अन्य प्रजाति रिवर लैपविंग को आकर्षित कर सके।
रिवर लैपविंग अपने आचरण में तो लाल और पीली चोंच वाली टिटहरी के ही मानिंद लगी। पर इसके सिर पर एक कलगी जैसी संरचना इसे नादर्न लैपविंग का ज्यादा नजदीकी बताती जान पड़ी। जितने किस्म के लैपविंग की चर्चा हमने ऊपर की उसमें अपेक्षाकृत कम दिखने के कारण और अपनी क्रेस्ट या कलगी जैसी संरचना और पंखों में एक इंद्रधनुषी चमक के कारण नादर्न लैपविंग सर्वाधिक सुंदर जान पड़ते हैं।
बिहार के गोगाबिल झील या बंगाल के गजालडोबा में यह सर्दियों में माइग्रेट करते हैं। बिहार, बंगाल और झारखंड वाले इलाके में कुल मिलाकर यही पाँच किस्म के लैपविंग देखे जाते हैं। हांलाकि जिस गति से इनके हैबिटैट नष्ट हो रहे हैं, धीरे-धीरे इनमें से दो का दिखना कम हो सकता है या बंद भी हो सकता है। इस दिशा में अपेक्षित संवेदनशीलता का निर्माण ना तो सरकारी स्तर पर और ना ही आम जनता के स्तर पर हो सका है। इस दिशा में पहल की जरुरत बनी हुई है।
1. पीली चोंच वाली टिटहरी
2. ग्रे हेडेड लैपविंग
राहुल सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, विश्व भारती, शांतिनिकेतन
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