पात पात बिहँस रहा प्रात
व्योम की नीलिमा में खोजता पथ,
कौन आ रहा, चढ़ा वह रश्मिरथ।
लालिमा में लुप्त हो रही रात,
पात-पात बिहँस रहा प्रात।
तरु-शैशवों से फूट रहीं कोंपलें,
क्यारियाँ में केसर के सिलसिले।
कामिनी जाग रही, सो रही रात।
पात -पात बिहँस रहा प्रात।
अरुणोदय में खुले कमल-दल-पट,
कैद भ्रमर सांस लेने निकला झट।
हरीतिमा में स्वर्णिमा आत्मसात।
पात-पात बिहँस रहा प्रात।
पर्वतों से सरक रही धवल-धार,
प्रकृति नटी कर रही नित श्रृंगार।
शिखरों से झाँकता अरुण स्यात,
पात-पात बिहँस रहा प्रात।
वृक्षो से लिपट रही लतायें,
संवाद में रत तरु शाखाएं।
अरुनचूड़ बोल उठा बीत गयी रात।
पात पात बिहँस रहा प्रात।
ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
अवकाश प्राप्त अधिकारी
टाटा स्टील,
निवास : सुन्दर गार्डन, संजय पथ, डिमना रोड, मानगो. जमशेदपुर.