स्पेशल डेस्क। देव दीपावली सनातन धर्म का प्रमुख त्योहार है, जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह नवंबर के महीने में आता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था। इसके बाद काशी के मंदिरों और घाटों को देवताओं द्वारा उत्सव के रूप में सजाया गया था और तब से लेकर आज तक वाराणसी में भव्य रूप से दीपावली के निर्धारित समय के बाद पड़ने वाली प्रथम पूर्णिमा तिथि को धूमधाम से देव दीपावली मनाई जाती है। सालों साल इस त्योहार का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। लाखों की संख्या में दूर-दराज से पर्यटक इस ऐतिहासिक पल को देखने के लिए वाराणसी आते हैं।
देव दीपावली के दिन धरती पर उतरते हैं देवी-देवता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देव दीपावली का आयोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु के एक महत्वपूर्ण अवतार, वामन अवतार का जन्म हुआ था। साथ ही इस दिन कार्तिक पूर्णिमा को माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता धरती पर उतरते हैं और काशी में दिवाली मनाते हैं, इसलिए इस त्योहार को देव दीपावली कहा जाता है। इस दिन काशी और गंगा घाटों पर काफी रौनक रहती है और दीपदान किया जाता है। देव दीपावली के अवसर पर घर के पास के किसी मंदिर में जाकर अपने आराध्य की पूजा करें। मंदिर में अपने आराध्य को मंत्रोच्चार करते हुए दीप दिखाएं। फिर किसी गरीब या जरूरतमंद को पैसे या अनाज दान करें। ऐसा करने से आपके घर की आर्थिक उन्नति होगी और आप जीवन में काफी तरक्की करेंगे।
दीप दान और तुलसी के पास दीप जलाने का है महत्व
इस दिन दीप दान और नदी स्नान का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था और देवी लक्ष्मी तुलसी के रूप में प्रकट हुई थीं। देव दीपावली के दिन घर पर घी या सरसों के तेल के 11 दीपक जलाने का महत्व है। पहले मिट्टी के दिए को मां तुलसी के पास रखें। इसके बाद एक दिए को घर के दरवाजे के बाहर रखें। बाकी बचे 9 दीयों को आप मंदिर में रख दें। इसके बाद विष्णु सहस्रनाम और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। कहा जाता है ऐसा करने से भाग्य समृद्ध होता है और घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।
देव दीपावली से जुड़ी कथा
त्रिपुरासुर नामक असुर ने पृथ्वीवासियों को त्रस्त कर रखा था। पृथ्वीवासी देवताओं से रक्षा की गुहार लगा रहे थे। परेशान हो सभी देवी-देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे।भगवान शंकर ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का संहार कर पृथ्वीवासियों और देवी-देवताओं की रक्षा की थी। त्रिपुरासुर से छुटकारा मिलने के बाद देवी-देवताओं ने भगवान शंकर की नगरी काशी पहुंच कर वहां दीप जलाकर खुशियां मनाई और भगवान शंकर का आभार जताया। तब से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावाली मनाई जाने लगी।
कब है देव दीपावली 2023?
इस बार देव दीपावली के तिथि को लेकर लोगों के बीच असमंजस बना हुआ था। काशी विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि इस बार मनाए जाने वाली देव दीपावली को लेकर धर्म शास्त्रों के विद्वानों की बैठक हुई है, जिसमें यह फैसला लिया गया है कि पूर्णिमा तिथि के अनुसार 26 नवंबर को ही देव दीपावली मनाई जाएगी। सभी विद्वानों ने आपसी विचार-विमर्श के बाद यह फैसला लिया है कि यही तिथि सही है। इसके अलावा जो भी तारीख बताई जा रही है, वह तिथि सही नहीं है।
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