नई दिल्ली : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास को पड़ोसी राज्य ओडिशा का राज्यपाल बनाए जाने की घोषणा के साथ ही राज्य में राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। झारखंड की राजनीति में इसे बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस फैसले को भगवा ब्रिगेड की बड़ी स्ट्रेटजी के रूप में परिभाषित किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो यह फैसला शत-प्रतिशत आगामी चुनाव को ध्यान में रखकर ही लिया गया है।
रघुवर दास के राज्यपाल बनाए जाने के क्या हैं मायने-मतलब
1. क्या लोकसभा चुनाव से पहले सारे विरोध के स्वर खत्म हो गये?
रघुवर दास के राज्यपाल बनाए जाने के बाद यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे पार्टी अपने नाराज नेताओं के एक गुट को संतुष्ट करने में सफल रहेगी। लोकसभा चुनाव से पहले पूरी पार्टी संगठित दिखने लगेगी। इसका असर चुनाव परिणाम पर पड़ेगा। ऐसा कहा जाता है कि रघुवर दास से मतभेद के कारण भाजपा के कई वरिष्ठ नेता पार्टी से दूर हो गए थे। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान में लोकसभा की तीन सीटों पर रघुवर दास का दबाव पार्टी के उम्मीदवार चयन में आड़े आ रहा था। इसमें जमशेदपुर, चतरा और धनबाद की सीटें शामिल थीं। इसमें से एक सीट पर खुद रघुवर दास की दावेदारी मानी जा रही थी। वहीं दो सीटों पर उनकी पसंद की उम्मीदवार के चयन का दबाव था।
2.क्या मरांडी का रास्ता हो गया साफ
रघुवर दास को राज्यपाल बनाए जाने के साथ ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का रास्ता साफ होने का तर्क दिया जा रहा है। आने वाले लोकसभा चुनाव में वह पार्टी हित में कोई भी निर्णय लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हो गये हैं। चुनाव के बाद परिणाम को लेकर वह पार्टी में किसी तरह के असंतोष अथवा गुटबाजी का तर्क केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष नहीं रख सकेंगें। अगर लोकसभा चुनाव में पार्टी वर्ष 2019 का अपना प्रदर्शन कायम रखती है अथवा परिणाम और बेहतर आते हैं तो इससे मरांडी का कद बढ़ेगा। इससे पार्टी विधानसभा चुनाव में नेतृत्व को लेकर किसी तरह के असमंजस अथवा दुविधा में नहीं रहेगी।
3. क्या सरयू की होगी घर वापसी
प्रदेश भाजपा की सक्रिय राजनीति से रघुवर दास के दूर होने के बाद यह भी कयास लगाये जा रहे हैं कि अब सरयू राय की भाजपा में फिर घर वापसी आसान हो जाएगी। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के इन दोनों बड़े नेताओं की तकरार से संगठन को बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ था। एक तरफ जहां पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर सकी वहीं पूरे कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों की विधानसभा सीटों पर पार्टी का खाता नहीं खुल सका था। तत्कालीन मुख्यमंत्री को हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसा माना जा रहा है कि जमशेदपुर पूर्वी से मौजूदा विधायक सरयू राय धनबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। रघुवर दास के प्रदेश राजनीति में सक्रिय रहने तक सरयू राय की वापसी लगभग असंभव बनी हुई थी। पार्टी का केंद्र नेतृत्व किसी भी कीमत पर अपने बड़े ओबीसी नेता को नाराज कर सरयू को फिर से भगवा गमछा पहनने का जोखिम नहीं ले सकता था। रघुवर के प्रदेश राजनीति से हटाने के बाद पार्टी के पास सरयू राय को देने के लिए कई विकल्प बन गये हैं।
4. क्या रघुवर खेमा हो गया पूरी तरह से संतुष्ट
प्रदेश भाजपा में रघुवर दास के खेमे में माने जाने वाले विधायकों को पार्टी ने हाल ही में उचित सम्मान दिया है। हाल ही में अमर बाउरी को पार्टी के विधायक दल का नेता बनाया गया वहीं जेपी भाई पटेल को सचेतक का दायित्व दिया गया। यह दोनों पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नजदीकी लोगों में माने जाते हैं। इसके साथ ही रघुवर दास को चुनावी हार के बावजूद शासन सत्ता में दोबारा स्थापित कर दिया गया है। संभावना जताई जा रही है कि रघुवर दास का खेमा इस एडजस्टमेंट से पूरी तरह से संतुष्ट हो जाएगा। रघुवर को नई जिम्मेदारी देकर भाजपा ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मास्टर स्ट्रोक खेला है। पार्टी छत्तीसगढ़ की जनता के बीच एक सकारात्मक संदेश देने में सफल हो सकती हैं। छत्तीसगढ़ के लोग रघुवर दास को अपने राज्य का निवासी मानते हैं। इससे बड़ा वोट बैंक पार्टी के पक्ष में लामबंद हो सकता है।
5. क्या जमशेदपुर की स्थानीय राजनीति में आएगा बड़ा बदलाव
रघुवर दास के राज्यपाल बनाए जाने के बाद यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि जमशेदपुर की स्थानीय राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है। जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र रघुवर दास की परंपरागत सीट रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में रघुवर दास चुनाव हार गए थे। आगामी विधानसभा चुनाव में वह फिर इस सीट से निर्विवाद उम्मीदवार बन सकते थे। ऐसे में अगर वर्ष 2024 तक रघुवर दास राज्यपाल बने रहते हैं तो इस विधानसभा सीट पर दूसरे उम्मीदवारों को मौका मिल सकता है। भाजपा के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले और हिंदुओं के फायर ब्रांड नेता बनकर उभरे अभय सिंह में से किसी एक की लॉटरी लग सकती है। सरयू राय ने पहले ही यह संकेत दे दिया है कि रघुवर दास के अलावा अगर भाजपा किसी दूसरे प्रत्याशी को जमशेदपुर पूर्वी सीट पर मौका देती है तो वह सीट छोड़ सकते हैं।
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