नई दिल्ली। Supreme Court : सांसदों और विधायकों को वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में मुकदमे से मिला विशेषाधिकार छिन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस छूट पर अपनी असहमति जताई है और साल 1998 में दिए अपने पिछले फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में सांसदों-विधायकों को आपराधिक मुकदमे से छूट देने से इनकार कर दिया। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है और अपने 26 साल पुराने फैसले को ही बदल दिया है, जिसमें नोट के बदले वोट लेने पर कार्रवाई प्रावधान नहीं था।
Supreme Court : सात जजों की बेंच ने सुनाया फैसला
Supreme Court की सात जजों की बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाया है। इसमें कोई सांसद और विधायक पैसे लेकर अगर सवाल भी पूछेंगे और वोट देंगे, तब भी कार्रवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले अनुच्छेद 105 का हवाला दिया है। सुप्रीम कोर्ट के सात बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि घूसखोरी में किसी प्रकार की छूट नहीं दी जाएगी।
क्यों दी गई थी छूट, पूरा मामला समझें
मालूम हो 26 साल पहले 1998 में लोकसभा में पैसे लेकर सांसदों को द्वारा वोट करने के मामले में सांसदों पर केस चलाने पर छूट दी गई थी। इस मामले में पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) तहत सांसदों को छूट देने की बात सुप्रीम कोर्ट ने कही थी।
1998 के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट है असहमत
सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों और सांसदों को विशेषाधिकार देने की बात कही थी। इस फैसले को बदलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सांसद और विधायक की छूट खत्म कर दी है। वोट के बदले नोट देने के मामले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम पीवी नरसिम्हा राव के मामले में आए फैसले को लेकर असहमत है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले आए फैसले को खारिज कर दिया है।
वोट के बदले नोट मामले में सांसदों व विधायकों पर होनी चाहिए कार्रवाई :
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायक और सांसद अगर भ्रष्टाचार करते हैं, पैसे लेकर भाषण या वोट देते हैं या पैसे देकर वोट लोगों से खरीदते हैं, तो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। अगर जनप्रतिनिधियों को ऐसे ही छूट मिलती रहेगी, तो संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली नष्ट हो जाएगी। 1998 में पांच जजों की टीम ने तीन बाई दो के बहुमत से फैसला सुनाया था,जिसे पलट दिया गया है।
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