हैदराबाद/Justice Nagratna : देश में नाेटबंदी के सात साल बाद सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि वे नोटबंदी के बाद आम आदमी की दुर्दशा से व्यथित थीं। हम सब जानते हैं कि 8 नवंबर 2016 को क्या हुआ था। तब चलन में 86% करेंसी 500 और 1000 रु. की थी।
उस मजदूर की कल्पना कीजिए जिसे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए नोटों को बदलना पड़ा। इसके बाद 98% करेंसी वापस आ गई, तो कालेधन का खात्मा कहां हुआ (जो उसका लक्ष्य था)? तो मैंने सोचा कि यह कालेधन को सफेद बनाने का एक अच्छा तरीका था, जिससे बेनामी नकदी सिस्टम में शामिल हो रही थी। इसके बाद आयकर कार्यवाही का क्या हुआ, हम नहीं जानते। उन्होंने कहा, जिस तरह से नोटबंदी की गई, वह सही नहीं थी।
जिस जल्दबाजी से यह किया गया। कुछ लोगों का कहना है कि तत्कालीन वित्त मंत्री को भी इसकी जानकारी नहीं थी। जस्टिस नागरत्ना नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में ‘कोर्ट्स एंड द कॉन्स्टिट्यूशन’ सम्मेलन में बोल रही थीं। वहीं उनके इस बयान काे केंद्र सरकार पर सीधा हमला माना जा रहा है। ऐसे में देखना हाेगा की लाेकसभा चुनाव के बीच यह कैसे राजनीतिक मुद्दा बनता है।
जिस बेंच ने नाेटबंदी काे वैध बताया था उसमें शामिल थीं जिस्टिस नागरत्ना:
उन्होंने कहा, एक शाम आदेश जारी हुआ और नोटबंदी हो गई। मुझे लगा कि यदि भारत कागजी मुद्रा से प्लास्टिक मुद्रा की ओर जाना चाहता है, तो भी निश्चित रूप से नोटबंदी इसका कारण नहीं था। गौरतलब है कि बीते साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने नोटबंदी के फैसले को 4-1 से वैध ठहराया था। उस बेंच की सदस्य रहीं जस्टिस नागरत्ना ने नोटबंदी को असंवैधानिक करार दिया था।
राज्यपाल संविधान के अनुसार काम करें:
जस्टिस नागरत्ना ने देश के विभिन्न राज्य सरकाराें व राज्यपालों के बीच विवाद पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, हाल ही में यह चलन बन गया है कि राज्यपाल द्वारा बिलों को मंजूरी देने में चूक या उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्य मुकदमेबाजी का मुद्दा बन जाते हैं। यह एक गंभीर संवैधानिक पद है और राज्यपालों को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए ताकि इस ऐसे मुकदमे कम हों। राज्यपालों को यह बताया जाना ठीक नहीं है कि उन्हें क्या करना है या नहीं करना है। मुझे लगता है अब वह समय आ गया है जहां उन्हें बताया जाएगा कि वे संविधान के अनुसार कर्तव्यों का पालन करें।
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