पुरी। पुरी का जगन्नाथ मंदिर और उसका रत्न भंडार हमेशा श्रद्धालुओं की जिज्ञासा का मुद्दा रहा है। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के प्रशासन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को भगवान के रत्न भंडार की ढांचागत स्थिति जांचने के लिए लेजर स्कैनिंग तकनीक से जांच करने की अनुमति दे दी है। चार धामों में से एक पुरी स्थित 12वीं सदी के इस मंदिर में लेजर तकनीक से यह पता किया जाएगा कि पत्थर की दीवारों में कोई दरार तो नहीं आई या कोई क्षति तो नहीं हुई है।
लेजर स्कैनिंग पवित्र कार्तिक महीने के बाद शुरू होने की उम्मीद
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के मुख्य प्रशासक रंजन के.दास बताया कि हमने एएसआई को रत्न भंडार की लेजर तकनीक से जांच करने की अनुमति दे दी और एजेंसी इस दौरान मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ का ध्यान रखते हुए प्रक्रिया पूरी करेगी। उन्होंने बताया कि लेजर स्कैनिंग पवित्र कार्तिक महीने के बाद शुरू होने की उम्मीद है जो अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के अंत के बीच पड़ रहा है।
जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार की लेजर स्कैनिंग की अनुमति मिली
एएसआई अधिकारी ने बताया कि रत्न भंडार के प्रत्येक पत्थर की जांच की जाएंगी ताकि मामूली दरार का भी पता लगाया जा सके। इस दस्तावेजीकरण का इस्तेमाल रत्न भंडार के सरंक्षण और ढांचे की भौतिक स्थिति का पता लगाने के लिए किया जायेगा।
अंदर कितना खजाना?
दोनों कमरों में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के आभूषण हैं। पूर्व कानून मंत्री प्रताप जेना ने विधानसभा में अप्रैल 2018 को खजाने की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि 1978 में रत्न भंडार में 12 हजार 831 भारी सोने के आभूषण हैं, जिनमें कीमती पत्थर लगे हुए हैं। साथ ही 22 हजार 153 चांदी के बर्तन और अन्य चीजें भी हैं। इसका वजन लगभग 11.66 ग्राम है।
आखिरी बार कब खोला गया?
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि साल 1978 में 13 मई और जुलाई 23 के बीच रत्न भंडार आखिरी बार खोला गया था। खास बात है कि साल 1985 में 14 जुलाई को भी कमरा खोला गया, लेकिन अंदर क्या है कि इसकी जानकारी अपडेट नहीं की गई। 12वीं सदी के इस मंदिर में दो कमरे हैं। इनमें से एक को भीतर भंडार और एक को बाहर भंडार कहा जाता है। अब बाहरी कमरे को तो सालाना रथ यात्रा के समय पूजा के लिए खोला जाता है। इसके अलावा कई और अहम मौकों पर भी बाहर भंडार से आभूषण निकाले जाते हैं, लेकिन भीतर भंडार को खोले हुए 38 साल हो चुके हैं।
क्या है कमरों को खोलने की प्रक्रिया?
इन्हें खोलने के लिए ओडिशा सरकार से अनुमति लेनी होती है। उच्च न्यायालय की तरफ से निर्देश मिलने के बाद राज्य सरकार ने 2018 में कमरा खोलने की कोशिश की थी, लेकिन चाभी न होने की वजह से प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। तब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने बाहर से ही निरीक्षण किया था।
क्या है चाभियों का मामला?
2018 में पुरी में कलेक्टर रहे अरविंद अग्रवाल बता चुके हैं कि चाभियों के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। खास बात है कि भीतर कमरे की चाबी का जिम्मा कलेक्टर के पास ही है। इसके करीब दो महीनों के बाद ही मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस रघुबीर दास की अगुवाई में चाभियों के खोने की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे। आयोग ने सरकार को 324 पन्नों की रिपोर्ट भी सौंपी थी, लेकिन अब तक इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई है। जांच के आदेश के बाद 13 जून को ही कलेक्टर अग्रवाल ने कलेक्ट्रेट के रिकॉर्ड रूम में एक लिफाफा होने की जानकारी दी, जिसपर लिखा था ‘भीतर रत्न भंडार की डुप्लिकेट चाभियां’।
ASI फिर हुआ सक्रिय
अगस्त 2022 में एएसआई ने भीतर के कमरों को खोलने की अनुमति मांगी थी। इस संबंध में श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन को पत्र भी लिखा गया था, लेकिन अब तक अनुमति नहीं मिली है। अब लगातार हो रही इस मांग के बीच मंदिर प्रबंधन समिति अगस्त में ही रथ यात्रा 2024 के दौरान रत्न भंडार को खोलने की बात कह चुकी है।
सियासी एंगल
कुछ दिन पहले ही कांग्रेस ने पुरी में शक्ति प्रदर्शन किया था और रत्न भंडार का मुद्दा उठाया था। साथ ही पार्टी कई अन्य मुद्दों को लेकर भी प्रदर्शन कर रही थी। इसके बाद ओडिशा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष समीर मोहंती की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति यानी SJTMC के अध्यक्ष गजपति दिव्यसिंग देव से मिला था। मुलाकात के दौरान इसे दोबारा खोले जाने की मांग की थी।
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