नई दिल्ली : Supreme Court ने सोमवार को 14 वर्षीय एक दुष्कर्म पीड़िता को 30 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत दे दी। इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट के लड़की को गर्भ गिराने की मंजूरी न देने वाले फैसले को भी पलट दिया। कोर्ट ने डॉक्टरों के एक्सपर्ट पैनल के नेतृत्व में पीड़िता की प्रेगनेंसी को खत्म करने का निर्देश दिया है। बता दें कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में गर्भपात का आदेश देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद लड़की के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
अनुच्छेद 142 के तहत दिया गया फैसला (Supreme Court)
मामले की सुनवाई CJI जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने की। कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश दिया। CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने आदेश में कहा कि गर्भपात में हर घंटे की देरी गर्भस्थ शिशु के लिए कठिनाई पैदा कर रही है। इसके साथ ही बॉम्बे हाई कोर्ट के गर्भपात कराने का आदेश देने से मना करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
मेडिकल बोर्ड ने दी सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,‘मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि नाबालिग की इच्छा के विरुद्ध गर्भावस्था जारी रखने से महज 14 साल की किशोरी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।’ सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल को नाबालिग की चिकित्सकीय जांच का आदेश दिया था। उसने मुंबई के सायन स्थित अस्पताल से इस संबंध में रिपोर्ट देने को कहा था कि अगर पीड़िता चिकित्सकीय रूप से गर्भपात कराती है या उसे ऐसा न करने की सलाह दी जाती है, तो इसका उसकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर क्या असर पड़ने की संभावना है।
हाईकोर्ट ने किया था इनकार
इससे पहले यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। तब इस मामले में हाईकोर्ट ने गर्भपात को खत्म करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट का कहना था कि प्रेग्नेंसी को काफी समय हो गया है। ऐसे में इसे हटाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। पीड़िता की मां की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में की गई।
तब कोर्ट ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की मेडिकल जांच का आदेश दिया था। सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पेश की गई। इसके बाद कोर्ट ने 14 साल की नाबालिग की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अपरिहार्य शक्ति का प्रयोग किया।
क्या है कानून
सुप्रीम कोर्ट से पहले पीड़िता की मां ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट ने पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर पिछले हफ्ते तत्काल सुनवाई की। कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया। यह अनुच्छेद कोर्ट को किसी भी लंबित मामले में न्याय सुनिश्चित करने का अधिकार देता है।
भारत में गर्भपात का अधिकार मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत मिलता है। 2021 में इस एक्ट में जरूरी संशोधन भी किए गए थे। दुष्कर्म के मामलों में गर्भपात की समय सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई थी। तब इन संशोधनों को बेहद प्रगतिशील माना गया था।
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